गाँव गाँव ख़ामोशी सर्द सब अलाव हैं / सब्त अली सबा

गाँव गाँव ख़ामोशी सर्द सब अलाव हैं
रह-रव-ए-रह-ए-हस्ती कितने अब पड़ाव हैं

रात की अदालत में जाने फै़सला क्या हो
फूल फूल चेहरों पे नाख़ुनों के घाव हैं

अपने लाडलों से भी झूठ बोलते रहना
ज़िंदगी की राहों में हर क़दम पे दाओं हैं

रौशनी के सौदागर हर गली में आ पहुँचे
ज़िंदगी की किरनों के आसमाँ पे भाव हैं

चाहतों के सब पंछी गए पराई ओर
नफ़रतों के गाँव में जिस्म-जिस्म घाव हैं

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