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गाँव छोड़ि कै हमहू भागे / सन्नी गुप्ता 'मदन'

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शोर शराबा सुनि सुनि कै रतिया भै जागे।
अबकी भैवा गाँव छोड़ि कै हमहू भागे।।
डीजे वाला डांस देखि कै,
मुन्नी कै रोमांस देखि कै।
दादा का एडवांस देखि कै
अन्न से जादा मांस देखि कै।।
कोट काचेहरिक नाच देखि कै,
सबकै तीन औ पाँच देखि कै।
पैसा वाला साच देखि कै,
हर दिवार मा काँच देखि कै।।
घर मा बिटियक जेल देखि कै,
मोबाइल कै खेल देखि कै।
सूखी-सूखी बेल देखि कै,
महकै वाला तेल देखि कै।।
गौवै में ससुरार देखि कै,
भाय-भाय मा मार देखि कै।
टूटी-फूटी डार देखि कै,
रावण कै अवतार देखि कै।।
डाई वाला रंग देखि कै,
जीन्स पैंट कै ढंग देखि कै।
कुलै मोहारी तंग देखि कै,
हंस औ बगुला संग देखि कै।।
बड़का बाबू कलिहै एक गरीब का दागे।
अबकी भैवा.........
गुल्ली बदले गेंद देखि कै,
सबके दिल मा छेद देखि कै।
आपस के मतभेद देखि कै,
काला और सफ़ेद देखि कै।।
मैगी औ चाउमीन देखि कै,
हर हाथे नैपकीन देखि कै।
मनइम गोरुक जीन देखि कै,
जल बिन तड़पत मीन देखि कै।।
मधुशाला मा लीन देखि कै,
सबकै आपन बीन देखि कै।
माँगेस् जादा छीन देखि कै,
हर आँखी दुरबीन देखि कै।।
चूल्हिक बदले गैस देखि कै,
घमंड वाला कैश देखि कै।
सबका गर्मिस लैश देखि कै,
बेमतलब कै ऐश देखि कै।।
बिना पेड़ कै गाँव देखि कै,
उठापटक कै दाँव देखि कै।
जूता वाला पाँव देखि कै,
दिल मा बदलेक भाव देखि कै।।
कऊ लाख वहि बिटिया के दहेज़ मा मागे।
अबकी भैवा......
काँटे वाला पेड़ देखि कै,
गन्नस जादा गेड़ देखि कै।
हर खेते म मेड़ देखि कै,
झुण्ड-झुण्ड म भेड़ देखि कै।।
हर घर मा बीमार देखि कै,
हर जुबान पै धार देखि कै।
हल्ला दंगा मार देखि कै,
ठग्गू कै व्यापार देखि कै।।
हर घर काली दाल देखि कै,
नौके लड़केक चाल देखि कै।
सबकै उज्जर खाल देखि कै,
हीरो वाला चाल देखि कै।।
माठस ज्यादा चाय देखि कै,
सबकै हेलो हाय देखि कै।
रोवत बिलखत गाय देखि कै,
पक्के छत कै छाय देखि कै।।
मूड़ पतोहेक खुली देखि कै,
रंग म्यहाउर धुली देखि कै।
सास-ससुर का कुली देखि कै,
जहर नज़र मा घुली देखि कै।।
देखि हाल हम कान पकर उठ बइठै लागे।
अबकी भैवा............
बड़ी-बड़ी संदूक देखि कै,
हर हाथे बन्दूक देखि कै।
माई दादक मूक देखि कै,
पान सुपाड़िक थूक देखि कै।।
लेन देन कै झाम देखि कै,
घर के भीतर घाम देखि कै।
चिंटू,पिंटू नाम देखि कै,
छूरी साथे राम देखि कै।।
मरता हुआ किसान देखि कै,
सहमा हुआ वितान देखि कै।
बेमतलब कै ज्ञान देखि कै,
गुटका,दारू,पान देखि कै।।
तुलसी आज उदास देखि कै,
बहिनिस साली खास देखि कै।
बिटियन कै उपहास देखि कै,
गंगा सरजुक नाश देखि कै।।
चिरई सुग्गक हाल देखि कै,
जानवरेक बेहाल देखि कै।
सबके हाथे जाल देखि कै,
मदन स्वयं कंगाल देखि कै।।
बड़े मुस्किलन से सुलझाये उलझे धागे।
अबकी भैवा..........