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गाँव छोड़ कर अपना है शायद अपराध किया / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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गाँव छोड़कर अपना है शायद अपराध किया।
शायद मेरे गाँव गली ने मुझको याद किया॥

कौर अटकने लगा गले में
रुक रुक जाती साँस।
आने लगी हिचकियाँ
होता है अद्भुत आभास।
पिछवाड़े बरगद ने है फिर ठंडा श्वांस लिया।
भूली किसी याद ने है फिर मुझको याद किया॥
शायद मेरे गाँव गली ने मुझको याद किया॥

वह बचपन वह धूल धरा
वह खेत बाग पगडंडी।
तन मन को शीतल कर जाती
थी पुरवइया ठंडी।
भोले मनपंथी ने जब जग का विश्वास किया।
लगता है सारा जीवन यूं ही बर्बाद किया।
शायद मेरे गांव गली दे मुझको याद किया॥

सूख गई आँगन की तुलसी
अमराई के बौर
फिरे भटकता मन पगलाया
मिले न कोई ठौर।
मुट्ठी भर पतझर के बदले है मधुमास दिया।
छोड़ स्वर्ग सा गाँव शहर को क्यों आबाद किया।
शायद मेरे गाँव गली ने मुझको याद किया॥

कहाँ खो गए सावन कजरी
होली फागुन गीत।
कहाँ खो गये इंद्रधनुष से
सपने मन के मीत।
तन्हा सर्द अँधेरी रातें बहुत तलाश किया।
भूला हुआ काम यह शायद बरसों बाद किया।
शायद मेरे गाँव गली ने मुझको याद किया॥

चकाचौंध के आकर्षण ने
छुड़ा दिया घर बार।
युग युग का बनवास काटकर
भी न मिला वह प्यार।
लोगों के जंगल में किस ने किस का साथ दिया।
एक मशीनी जीवन है साँसों पर लाद लिया।
शायद मेरे गाँव गली में मुझको याद किया॥