भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाँव भारथऽ के / श्रीस्नेही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गामें तेॅ सबके भारथ छेखौं मिली केेॅ सम्मैं करऽ प्रणाम!
हेकर्ेहे पै सबके जीवन भैया हेकर्ेहे नामऽ पर सबके मान!!

देखै छौ रूप की, उड़लऽ छप्पर!
माटी के घऽर, बारी परती-बंजर!!
ऐंगनऽ-ओसरा उब्बड़-खाबड़!
मूसा के मान आरो बँगला अनगढ़!!

बामन के भेषू धरी खाढ़ऽ छौं आगू हमरऽ तोर्हऽ सबके भगवान!
गामें तेॅ सबके भारथ छेखौं मिली केॅ सभ्भैं करऽ प्रणाम!

देखै छौ खेत की, वनऽ बैहार!
बालू-कंकड़ अड्डा-आर!!
उँच्चऽ नीच्चऽ टील्हऽ-टीकर!
मरलऽ नद्दी सूखलऽ पोखर!!

मैया सोहागिन फाटलऽ अँचरा, तरऽ में लेॅकेॅ दूधऽ के खान!
गामें तेॅ सबके भारथ छेखौं मिली केेॅ सभ्भैं करऽ प्रणाम!!

याहीं देवधर याहीं जगरनाथ!
याहीं बैकुंठ आरो याहीं पेॅ भूतनाथ
गंगा-जमना-कृष्णा काबेरी!
याहीं बर्हमपुत याहीं गोदावरी!!

मिली केेॅ पूजा करऽ हो भैया गामें तेॅ हमरऽ स्वर्गऽ के धाम!
गामें तेॅ सबके भारथ छेखौं मिली केेॅ सभ्भैं करऽ प्रणाम!!