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गाँव भी अब कहाँ सुरक्षित है / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
गांव भी अब कहाँ सुरक्षित है
अब यहाँ की हवा भी दूषित है
गांव में , गांव जैसा क्या है अब
घर भी अपना लगे अपरिचित है
अब इधर ख़्वाब भी नहीं आते
रात कैसे कटे अनिश्चित है
उसको ये दर्द सालता होगा
देश खुशहाल है , वो पीड़ित है
किसको अपनी व्यथा सुनाये वो
सारे अधिकार से जो वंचित है
हाकिमों उस ग़रीब को देखो
थोड़ी पेन्शन जो पा के पुलकित है
ऐसा संकट है अब भरोसे का
बाप, बेटे से भी सशंकित है
क्या हुई आपसी परस्परता
व्यक्ति अब सिर्फ़ आत्मकेंद्रित है