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गांव म रइ जातेन / सुखनंदन लाल शिव
Kavita Kosh से
अड़ही मंय नइ जानव सहर के हाल ल
रिंगी चिंगी आनी बानी सतरंगी चाल ल
अपन गांवे म रइ जातेन हो, सहर डहर नइ जातेन न
सियाना दाई ददा तुंहर, आंखी उंखर झांझर हे
लाठी धर रेंगथे उन कमजोरहा जांगर हे
घर के देवता ल माना लेतेन हो सहर ढहर नइ जातेन न
वनी भूती करके हम नून पसिया पी लेबोन
जूनाह फरिया पहिर के, ये जिनगी ल जी लेबोन
चुहत छानी म फिल जातेन हो सहर डहर नइ जातेन न
गांव हमंर नीक लागय, बर पीपर छांव ह
नइ समझ पराय मोला सहरिया दांव ह
सहर गांवे ल वना लेटें हो, सहर डहर नइ जातेन न
सहर म तो वन ठन के रेंगथे सब खोर म
बांध लेही कोनो तुंहला लुगरा के छोर म
सपना कुरिया म सजा लेतेन हो, सहर डहर नइ जातेन न