गाई दहाई न या पे कहूँ,
नकहूँ यह मेरी गरी, निकस्थौ है।
धीर समीर कालिंदी के तीर,
टूखरयो रहे आजु ही डीठि परयो है।
जा रसखानि विलोकत ही सरसा ढरि,
रांग सो आग दरयो है।
गाइन घेरत हेरत सो पंट फेरत टेरत,
आनी अरयो है।
गाई दहाई न या पे कहूँ,
नकहूँ यह मेरी गरी, निकस्थौ है।
धीर समीर कालिंदी के तीर,
टूखरयो रहे आजु ही डीठि परयो है।
जा रसखानि विलोकत ही सरसा ढरि,
रांग सो आग दरयो है।
गाइन घेरत हेरत सो पंट फेरत टेरत,
आनी अरयो है।