गागर में सागर छलक उठा / शिवदेव शर्मा 'पथिक'
गागर में सागर छलक उठा, जग कहता-गागर खाली है
मीरा पीड़ा के गीत लिखे, तुम कहते हो 'मतवाली है' !
जिसको शहीद ने खून दिया, तुम उसको माटी कहते हो?
कुछ सीमा की भी बात करो! जब इस धरती पर रहते हो।
चन्दा में भी देखा कलंक, सूरज को भी बदनाम किया,
जो महल प्यार का बना रहा, उसको 'मजनू' का नाम दिया।
ज़िन्दगी विवश है पतझर में, आँखें कहतीं-हरियाली है
गागर में सागर छलक उठा, जग कहता-गागर खाली है!
कवि ने भाषा को पायल दी, उस कलाकार ने ताजमहल,
मज़दूर उसे दुनिया कहती जो गढ़ता है ये राजमहल!
जो जला प्रकाश का व्रत लेकर, केवल परवाना कैसे है?
जो बिना सफ़र के मिल जाये वह मंज़िल पाना कैसे है?
दीपक पर जले पतंग मगर, इन्सान कहे-दिवाली है,
गागर में सागर छलक उठा, जग कहता-गागर खाली है!
मन्दिर के पत्थर 'देव' बने, इन्सान मगर उपहास बना,
मर गये समर में लाख, मगर राजा का ही इतिहास बना।
हो गया आदमी खाद जहाँ, वह क्या है! मरघट ने पूछा,
यह गागर कैसे खाली है?-घबराकर पनघट ने पूछा-
पूछा पनघट ने दुनिया की तस्वीर कहाँ से काली है?
गागर में सागर छलक उठा, जग कहता-गागर खाली है!