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गागर सागर मान / प्रेमलता त्रिपाठी
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बूँद बूँद पानी को तरसे, गागर सागर मान।
मरुथल में जीवन हो कैसे, सदा रहे गतिमान।
शीष गगरिया चली नागरी, धूप रहे या छाँव,
गाँव गुजरिया गीत सुनाये, सजनी बड़ी महान।
चली बावरी डगमग भरती, जीवट भरे न आह,
आँखों में पानी का सागर, रीती गगरी आन।
कोमल काया घनी साधना, गाती यौवन राग,
चली प्रियतमा दूर नगर को, पानी हित अनजान।
प्रेम विकल है आज धरित्री, वरुण देव की आस,
पानी की हर बूँद बचाना, लें संकल्प सुजान।