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गाछी में / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
पत्ता फूल हजार भरल छै तुलसी के गाछी में।
जीयै के रसधार फरल छै तुलसी के गाछी में।
आस-पास के तुलसी-चैरा, घर-घर के रखबारी
दीप-षिखा सासों के बरल छै तुलसी के गाछी में।
देव धरा पर लानै लेली तुलसी दोल चढ़ाबै छै
तभीये ते सिन्दूर करल छै तुलसी के गाछी में।
रोग-षोक में माथ झुकाबो, मनचाहा फल पाबो
कत्ते रोग-बतास डरल छै तुलसी के गाछी में।
तुलसी आक्सीजन के जननी, सबके मान बराबर
नफरत के अभिमान जरल छै तुलसी के गाछी में।
नै बरसा नै जोत कोड़ के, रोजे-रोज झमेला
अनुभव के संसार धरल छै तुलसी के गाछी में।