गाज़े हैं नये और हैं रुख़सार पुराने / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
ग़ाजे़ हैं नये और हैं रुख्स़ार पुराने
बाज़ार में निकले हैं फुस़ूंकार पुराने
हो जाये सफल अपना भी बाज़ार में जाना
मिल जायें अगर राह में कुछ यार पुराने
हर रोज़ नया क़ौल, नया अह्द, नई बात
इस भीड़ में गुम हो गये इक़रार पुराने
कर देते हैं जो ताज़ा गुलाबों की ज़िया मांद
हैं शहर में कुछ ऐसे भी गुलज़ार पुराने
रखते थे दिलों में न तअस्सुब न कुदूरत
किस शान के थे लोग मज़ेदार पुराने
तू कृष्ण ही ठहरा तो सुदामा का भी कुछ कर
काम आते हैं मुश्किल में फ़क़त यार पुराने
अब और किसी जादए-उल्फ़त पे चलें क्या
पैरों में खटकते हैं अभी ख़ार पुराने
फ़ाक़ों पे जब आ जाता है फ़नकार हमारा
बेच आता है बाज़ार में अख्ब़ार पुराने
आयेगी किसी रोज़ अजल राहतें ले कर
जीते हैं इसी आस पे बीमार पुराने
देखा जो उन्हें एक सदी बाद तो 'रहबर'
छालों की तरह फूट पड़े प्यार पुराने