भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाता रहे मेर दिल,तू ही मेरी मंज़िल / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
गाता रहे मेरा दिल, तू ही मेरी मंज़िल,
कहीं बीतें न ये रातें, कहीं बीतें न ये दिन
प्यार करने वाले अरे प्यार ही करेंगे
जलने वाले चाहे जल जल मरेंगे
दिल से जो धड़के हैं वो दिल हरदम ये कहेंगे
कहीं बीतें न ...
ओ मेरे हमराही, मेरी बाँह थामे चलना,
बदले दुनिया सारी, तुम न बदलना
प्यार हमे भी सिखला देगा, गरदिश में सम्भलना,
कहीं बीतें न ...
दूरियाँ अब कैसी, अरे शाम जा रही है,
हमको ढलते ढलते समझा रही है,
आती जाती साँस जाने कब से गा रही है
कहीं बीतें न ...