भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाता है प्रभु- 2 / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
कण - कण में तू
फिर क्यों
सबको
अपने पास बुलाता है
तू क्यों नहीं जाता है
उनके पास
जाकर देख तो सही
रेत में कैसे रहते हैं वे
और नही ंतो कभी
गर्मी में
मनाने ही चला आ
छुट्टियां
तू कब से
एक ही जगह
बैठा हैं !
ऊब नहीं होती ?