भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाते सुना था / असंगघोष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने सुना था
सन् 64 में
गाँधीसागर बनकर पूरा हुआ
तब आए थे जवाहरलाल
उसी समय से आई थी
बिजली हमारे गाँव में।

मैंने बड़े भाई की शादी में
माँ, दादी, ताई को
गाते सुना था
सन् 1967 में
”गाँव-गाँव में बिजलियाँ लग गई
चक्कियाँ चल गईं हजार रे
मेरा बना जवाहरलाल“
तब आई ही थी बिजली
मेरे मोहल्ले में चौक के किनारे
खड़े खम्भे पर तारों पर झूलते
लट्टू में
पीली रोशनी लिए।

माँ के साथ पहली बार
बिजली की चक्की भी देखी
अनाज पिसाते माँगीलाल की चक्की पर जहाँ
पुरानी बन्द पड़ी भाप की चक्की भी थी।

माँ
सवेरे-सवेरे
भोर से पहले ही उठकर
पीसा करती थी अनाज
घर के कोने में बँधी
अलगनी के नीचे रखी
घट्टि<ref>चक्की</ref> में लोकगीत गाते हुए
माँ ने कभी नहीं सीखा
शास्त्रीय संगीत
सब पाया विरासत में
अपनी माँ व सास से
बहुत भाता था
माँ का इस तरह गाना।

अपनी शादी में
माँ-ताई को घट्टि चला
मेंहदी पीसते हुए
पुनः गाते सुना था
जवाहरलाल का गीत
तब समझा मैं
क्यों गाया जाता है जवाहरलाल
मेरा बेटा अभी छोटा है
पत्नी भी नहीं जानती यह गीत
घर में अब घट्टि भी नहीं है।

शब्दार्थ
<references/>