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गामक नाम थिक पुरबा बसात पछबा बसात / राजकमल चौधरी

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(एक)

कतबो दूर चल जाइत छी अन्न स्त्री आ भरिपेट निन्नक हम
उद्योगमे कतबो दूर चल जाइत छी
सभ दिनक लेल भीड़मे हेरा जाइ मेलामे
भसिया जाइ
तरुआरिसँ दुनू पाँखि काटि जँ देअय कोनो रावण-राजा
राशनकार्डक गेँटमे
डूबि जाइ रोशनाइ जकाँ ‘ब्लौटिन’ पर
पसरि जाय सौं से व्यक्तित्व
मुदा घरमुँहा बड़द सदिखन सभ स्थान काल पात्रमे
धरमुँहे बड़द होइत अछि
सिमरिया-घाटसँ गामक प्राइमरी श्क्षिकक संगेँ
हाजीपुर अथवा कलकत्ता पड़ा जाइत अछि कोनो सधवा
विधवा फुलकुम्मरि धी कुम्मरि स्त्री...
एकटा घबहा कुकूर भरि राति भरि दिन सदरि काल
औघाइत रहैत अछि
एहि गलीमे ओहि मचानतर...।

(दू)

एहि गलीमे ओहि मचानतर ओहिठाम भुतहा गाछीक
अन्हारमे गामक बीसटा नवयुवक
ठाढ़ भेल निर्णय नहि क’ सकैत छथि जे अन्नप्रसवा खेत
दिस जाइ किंवा मौरङिंया गाँजक पात्रधरि
किंवा बरौनी-कारखाना
किंवा संखिया-भाङ-धतूर-हफीम खाक’ एक्के इनारमे
खसि पड़ी बीसो नवयुवक
प्रेत बनि नचैत रहि जाइ युग-युगान्तर धरि
भुतहा गाछीक अन्हारमे...।

(तीन)

कतबो दूर चल जाइत छी अन्न स्त्री आ भरिपोख निन्नक
उद्योगमे हम कतबो दूर चल जाइत छी
मुदा,
घरमुँहा बड़द सदिखन घरमुँहे बड़द रहि जाइत अछि
सौंसे पृथ्वी सभटा युग चक्र
सगरे ऋतुधर्मक परिक्रमाक’ कखनहुँ घूरिक’
आबहि पड़त
बेलीक फूल सिन्दूरक रेखा उग्रताराक समीप
जरइए पड़त जेना भरि राति जरैत अछि एकसर मुख-मलान
भगवती-घरक दीप।

(चारि)

हमरा गामक नाम थिक पुरबा बसात पछवा बसात जखन
दुनू हवा एक संगे बहैत अछि
जखन केवल पछवा चलैत अछि सोलहो कला
सतरहो उद्योगक संग गामक मध्य रामशालापर गामक
108 कुमारि
अबैत छथि गबैत छथि हे पछबा महरानी
आब नहि, आब नहि,
तखन पुरबा बसात बह’ लगैत अछि
पुरुषवर्ग खेत खरिहान स्कूल-दोकान अस्पतालमे
स्त्रीगण आङनमे एतबे गप्प खिस्सा-पिहानी एतबे
सगुन-असगुन जे
चमेली दाइ किएक चलि गेलीह दरभंगा
कि एक प्रेम नगर कनियाँ पसेरी भरि धानक लेल भैंसुरसँ
करैत अछि अलाप कोन कारणेँ
प्रत्येक पाँचम मास अस्पतालक ओ सरकारी चमैन
कौशल्याक
आङनमे गबैत अछि मलार।

(पाँच)

बीसो नवयुवक आ 108 कुमारिकेँ अप्पन आँखि
अप्पन देह अप्पन मोनमे नुकौने
हम कतेक दिनधरि गामसँ जंगलसँ गाम
बौआइत रहब
कतेक दिनधरि खाइत रहब पुरबा बसात
पछबा बसात...
कतेक दिनधरि गाममे कहायब नगरवासी
आ नगरमे केवल प्रवासी...।

(छः)

जँ सत्त बाजब अपराध नहि घोषित भेल हो एखन धरि
गाम आ नगरमे
सुसंस्कृत मनुक्ख आ बताह जानवरमे
कोनो अन्तर नहि, कोनो अन्तर नहि बेली चमेली
आ अंग्रेजी गुलाबक सुखायल ठोरमे
एक्के पराग
गबैत अछि सौंसे प्रकृति समस्त देश-कोस एक्के सुरमे
एक्केटा गीत एक्केटा राग।

(मिथिला मिहिर: 16.4.67)