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गाम में आज का हाल / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
गाँव बदल गये सैं
गावँ धूल, माट्टी तै सने
गोबर, खपरेल के कच्चे पाक्के घर
नलके पै लुगाईयाँ की हाँसी-ठिठोली
भारी घाघरों की ठसक
चौपाला पर माणसाँ की हुक्का के साथ
लाम्बी चालती बहस
ना बिजली की चाहना
ना शहर की ओर राह
ठहरा-ठहरा, धीमा-धीमा सा जीवन
साझँ ढले दूध का काढणा
सबेरे-सबेरे चाक्की का चालना देख्या था हमने कद्दे
इब किते नजर कोनी आंदे
सारा किम्मे बदल गया सै
गाम ना तो शहर बणे
ना ही गाम रह गये
हर घर आगै काद्दा
यहाँ वहाँ गलियाँ
मै लुढकते शराबी-कबाबी
टी वी, डी जे का रोला
गाम साच्ची ही बदल गये हैं