भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गायब हो जाना अचानक एक दिन / सुजाता
Kavita Kosh से
दो गुलाबी समानांतर रेखाएँ...
यह तीसरी बार था
मुझे याद है
नसों में एनेस्थीसिया
भर देने से ठीक पहले
वह कह रहा था
मेरी भी एक ही है दुलारी
कई तारों के होने से एक चाँद होना
बेहतर है
सो जाओ
सब ठीक होगा
तुम ग़लत नहीं हो
बीच का वक़्त
जब सब कुछ खींच लिया गया था बाहर
वह नहीं घटा था मुझ पर मेरी याद में
मैं जागी थी किसी और दुनिया में
जहाँ नाभि के नीचे
भीतर तक नोच लिए जाने का अहसास था
मैंने देखा था
पिछले चन्द दिनों में
चौगुनी होती
एकदम सच्ची
शुद्ध
अपने पेट की भूख को
उसी दिन अचानक गायब होते
और जाना यह भी
कि
मरने के लिए
एनेस्थीसिया
कितना सुन्दर है!