भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाय दुधारी / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
की बकरी, जों गाय दुधारी
चींटी से खोटा छै भारी।
पोखरी से नद्दी अच्छा छै
कुइयाँ सागर लुग बच्चा छै
गिद्ध रहै नै खोता में
स्वाद न जरो सुखौता में
घास उगै नै गाछी तोॅर
गाछी में तेॅ पीपर-बोॅर।
एकरौ सें उच्चोॅ छै ताड़;
के पैतै एकरोॅ रं बाढ़।
बँसबिट्टी में बैठी जो
घास मिलै तेॅ लेटी जो।