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गाय धोन / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय,
मतुर वेदेॅ बताय छौं माय-माय माय।

तोरो दूध देवता दानव के चढ़ाय छै,
मानव महामानव आरती लगाय छै।
हिन्दू-मुश्लिम सब्भै रोॅ जी दै छै अघाय,
तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय।

तोहें गाय छौं रंग बिरंगोॅ रोॅ,
आपनोॅ-आपनोॅ ढंगोॅ रोॅ।
तोरै सें पावै छीं, दूध, दही, घी, मलाय,
तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय।

तोहें होय छोॅ चरकी, कारी, गोली,
कोय कोय होय छोॅ मटरंगोॅ कैली।
तोंही बछड़ा सें खेती कराय,
तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय।

मरनी जीनी करै छौं तोरा दान,
जानोॅ में शंाति पाय करै छै प्रणाम।
सब्भे छै पुरानोॅ "संधि" कविता बनाय
तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय।