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गालियों के आड़े आती थी तख्त की दीवार / राग तेलंग

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गालियों के न होने से
पलट सकता था तख्त
गालियों के होने से
बचा रहा तख्त पलट सकने से

गालियाँ निकलते ही
खाली हो जाता था
भीतर का गुस्सा

गालियाँ भीतर भरी रहने से
अनमना रहता था मन
जैसे रोके रखा गया हो
ज्वालामुखी को मुहाने पर

बाहर निकलते ही गालियाँ
चुनावी इश्तहारों की दीवार से टकराकर बिखर जाती थीं

सत्ता
दीवार की मरम्मत का
बराबर ध्यान रखती
कामना करती कि बनी रहे दीवार
गालियों के होने तक

यह गालियों की ताकत का अहसास था
जो दरअसल तख्त को ही मालूम था ।