भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाली ब्याई जी को / 4 / राजस्थानी
Kavita Kosh से
राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
दारी नोरतमल जी वाली रो छैलो।
लुटवायो रे रुपयो रो थैलो।
बेईमान-बेईमान अधर्मी छैलो लुटवायो रे रुपयो रो थैलो।
म्हारो सुसराजी सिखायो, म्हारे जेठजी सिखायर।
घर में कराई राड़ बेईमान अधर्मी छैलो लुटवायो रे रुपयो रो थैलो।
म्हारी जेठानी सिखायर आधो माल दिलायर।
कांही लेयलो बेईमान अधर्मी।
छैलो, लुटवायो रे रुपयो रो थैलो।
म्हारी दोराणी सिखायर।
म्हारो आधो काम बटांयर कांई लेयलो।
बेईमान अधर्मी छैलो, लुटवाया रे रुपयो रो थैलो।
मैं तो आया जी अवांर, म्हाना हो रही है संवार।
बतलावो घर को गैलो बेईमान अधर्मी छैलो।
थे तो आया छै संवार, थाने हो रही है अवांर,
यो पड्यो दही सो गैलो।