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गाली से क्या कम हैं / नईम
Kavita Kosh से
गाली से क्या कम हैं-
ये तहज़ीबो-तमद्दुन?
मंचों की खुस-पुस,
गलियारों पसरी सुनगुन।
रंग सियासत का हो या फिर दीन-धरम का।
पानी ही चुक गया आँख से हया-शरम का।
रूहानी ततकार बोल,
पर मांसल रुनझुन।
सही नाम चीज़ों का लेते मरती नानी,
कूटनीति के दूध मिला पानी ही पानी।
भ्रष्टाचार सगुण, लेकिन
ये कहते निर्गुण।
धाराधार नेह की भाषा घिसी-पिटी-सी,
कालपत्र के शोर, किंतु लिपि मिटी-मिटी सी।
सगुन विचार रहे
वे जो खुद पूरे असगुन।