भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गिनते जाओ / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'
Kavita Kosh से
गिनते जाओ गिनते जाओ
ग्यारह बारह गिनते जाओ।
बारह महीने साल के
आगे तुम बढ़ते जाओ॥
गिनते जाओ गिनते जाओ
तेरह चौदह गिनते जाओ।
वीर जवान भारत के तुम
आगे तुम बढ़ते जाओ॥
गिनते जाओ गिनते जाओ
पंद्रह सोलह गिनते जाओ।
दुश्मन को सबक सिखाने
आगे तुम बढ़ते जाओ॥
गिनते जाओ गिनते जाओ
सत्रह अठारह गिनते जाओ।
भारत माँ की रक्षा करने
आगे तुम बढ़ते जाओ॥
गिनते जाओ गिनते जाओ
उन्नीस बीस गिनते जाओ।
सरहद पर तिरंगा फहराने
आगे तुम बढ़ते जाओ॥