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गिनी-गिनी तारा, काटै छीहौं रात / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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गिनी-गिनी तारा, काटै छीहौं रात।
तोरा बिना प्रेम सें, केॅ करतै बात?
गम-गम बगीचा में कोइलिया कूकै छै
सुनी-सुनी लागै छै दिल पर आघात।
फूले-फूल थिरकै छै सतरंगी तितली
कलेजा पर लागै छै, रही-रही लात।
बेला-चमेली पर भौंरा मड़राबै छै
फागुन भी लागै छै भरलोॅ बरसात।
दिन भर बैठी केॅ राहे निहारै छीहौं
कहाँ भेलै आय ताँय मतुर मुलाकात?

03/03/16 रात्रि 8.30 बजे