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गिम्बी चुक के लिए / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
अचानक आकर कानों में
गा जाती है – “कुर्र”
उसको पकड़ने जाऊँ तो
उड़ जाती है –“फ़ुर्र”
दिन भर मस्ती शोर-शराबा
चैन नहीं पल भर
उसे सुलाते रात ख़ुद
सो जाती है – “खुर्र”
जंगल, नदियाँ, पर्वत, सागर
पार किए जाती
थके नहीं उसकी गाड़ी
चली जाती है – “ढुर्र”