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गिरना / मंगलेश डबराल
Kavita Kosh से
सबसे ज़्यादा ख़ामोश चीज़ है बर्फ़
उसके साथ लिपटी होती है उसकी ख़ामोशी
वह तमाम आवाज़ों पर एक साथ गिरती है
एक पूरी दुनिया
और उसके कोहराम को ढाँपती हुई
बर्फ़ के नीचे दबी है घास
चिड़ियाँ और उनके घोंसले
और खंडहर और टूटे हुए चूल्हे
लोग बिना खाए जब सो जाते हैं
वह चुपचाप गिरती रहती है
बर्फ़ में जो भी पैर आगे बढ़ता है
उस पर गिरती है बर्फ़
बर्फ़ गिर रही है चारों ओर आदि-अंतहीन
रास्ते बंद हो रहे हैं
उस पार कोई चीखता है
बर्फ़ पर उसकी आवाज़ फैलती है
जैसे ख़ून की लकीर
(रचनाकाल :1976)