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गिरा हूँ मुंह के बल, ज़ख़्मी हुआ हूँ / देवी नांगरानी
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गिरा हूँ मुंह के बल, ज़ख़्मी हुआ हूँ
लगा कर झूठ के पर जब उड़ा हूँ
गंवा कर होश आता जोश में जब
मैं जीती बाज़ियाँ तब हारता हूँ
मुझे पहुँचायेंगी साहिल पे मौजें
मैं तूफानों में घिरकर सोचता हूँ
मिलन का मुंतज़र हूँ मौत आजा
मुझे जीना था उतना जी लिया हूँ
उधर देखा नहीं आँखें उठाकर
नज़र से जब किसी की मैं गिरा हूँ
लगाईं तोहमतें बहरों ने मुझ पर
वो समझे बेज़ुबाँ मैं हो गया हूँ
रही हर आँख नम महफ़िल में ‘देवी’
मैं बनकर दर्द हर दिल में बसा हूँ.