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गिरें धरम कि गिरे जातियाँ नहीं झिलतीं / पुरुषोत्तम प्रतीक
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गिरें धरम कि गिरें जातियाँ नहीं झिलतीं
सही कहें कि हमें लाठियाँ नहीं झिलतीं
चलो वहीं कि जहाँ लोगबाग रहते हैं
हमें उजाड़ हुई बस्तियाँ नहीं झिलतीं
रहा नसीब उसी का जिसे मिली रोटी
हमें नसीब, उन्हें रोटियाँ नहीं झिलतीं
तुम्हें सही न लगे बात है सही फिर भी
तुम्हें कबीर झिला, साखियाँ नहीं झिलतीं
किसे सलाम बजाएँ किसे प्रणाम करें
हमें ग़ुलाम, झुकी काठियाँ नहीं झिलतीं