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गिलहरी की उड़ान / मुदित श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मैं लेना चाहता हूँ
सूरज से कुछ रोशनी
और बन जाना चाहता हूँ एक सुबह
जो किसी चिड़िया के चहचहाने की वज़ह बन जाए,
चाँद से कुछ चमक ले लूँ,
और बन जाऊँ चमकती लहरें
जो किनारे पर जाकर
कछुओं के बच्चों को
अपनी गोद में बिठाकर
समंदर तक छोड़ आयें
मैं रात से कुछ
अँधेरा भी लेना चाहूँगा
और बन जाना चाहूँगा एक नींद
जो बच्चों को सपनों की दुनिया में ले जा सके
मैं पेड़ों से उनकी शाखाएँ चाहता हूँ,
कुछ समय के लिए
और बन जाना चाहता हूँ एक झूला
जिस पर एक बाप
अपने बच्चे को एक ऊंचा-सा झोटा दे पाए
मैं परिंदों से
उनके पंख लेना चाहता हूँ
ताकि मैं एक लंबी उड़ान भर सकूँ
वही उड़ान
जो किसी गिलहरी ने अपने सपने में
देखी होगी!