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गिलहरी / ओम पुरोहित ‘कागद’

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खेत के
सबसे ऊँचे धोरे पर
बनी मचाण पर बैठी
रात के सन्नाटे में
कुतरती है नाखून गिलहरी

कान लगाए,
फूटे तो सही
किसी ओर से
माणस के मिठड़े बोल

सपने सजाए बैठी है
योग माया-सी गिलहरी ।