भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गिलहरी / राहुल शिवाय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन को बहुत गिलहरी भाती
घर में रहती आती-जाती
भोली-भाली बहुत लजीली
देख सभी को यह शरमाती।

कभी रसोईघर के पीछे
करती रहती ऊपर-नीचे
कभी पेड़ पर यह चढ़ जाती
दिनभर सरपट दौड़ लगाती

चिक-चिक-चिक-चिक करती रहती
अपने नखरे यह दिखलाती
दिनभर चुनकर अपना चारा
अपने बिल में है घुस जाती।