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गिलहरी / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
लटकी हुई हैं
बर्फ़ सी गिलहरियाँ
मेरे वजूद की
यहाँ।
डरी-डरी
सहमी सी
थामे टहनियाँ।
उल्टी लटकी हुई फाँस
एक दिन
काल बन जाएगी।