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गिला शिकवा नहीं कोई महज़ इतना फ़साना है / देवेश दीक्षित 'देव'
Kavita Kosh से
गिला शिकवा नहीँ करता, महज़ इतना फ़साना है
मुकद्दर है ये शीशे का, उसे तो टूट जाना है
हमारे कहकहों का राज़ तुम क्या जान पाओगे,
हमारे दर्द का दिल से बहुत रिश्ता पुराना है
भरोसा मत करो इतना, बहुत जर्जर सी कश्ती हूँ
हवायें तेज़ चल जायें, हमारा क्या ठिकाना है
हमारा छोड़ दें दामन, ये अपनी याद से कह दो,
बहुत ग़म सह लिये हमने, ज़रा अब मुस्कराना है
नहीँ इतराइये अपनी उडानो की बलंदी पर,
ये साँसें चंद दिन की हैं, सभी कुछ छोड़ जाना है
तुम्हारे औ हमारे दरमियाँ इतना सा रिश्ता है,
हमें हैं इम्तिहां देने, तुम्हें बस आजमाना है
कभी तन्हाइयों में 'देव' तुम तन्हा नहीँ रहना,
किसी की याद को दिल से तुझे हँसकर भुलाना