गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का / ग़ालिब
गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा<ref>जगह की तंगी</ref> का
गुहर<ref>मोती</ref> में महव<ref>लीन</ref> हुआ इज़्तराब<ref>तड़प</ref> दरिया का
ये जानता हूँ कि तू और पासुख़-ए-मकतूब<ref>ख़त का जवाब</ref>
मगर सितमज़दा<ref>सताया हुआ</ref> हूँ ज़ौक़े-ख़ामा-फ़र्सा<ref>कलम घिसने की आदत</ref>का
हिना-ए-पा-ए-ख़िज़ां<ref>पतझड़ के पैरों की मेंहदी</ref> है बहार, अगर है यही
दवाम<ref>हमेशा</ref> क़ुल्फ़ते-ख़ातिर<ref>दुख, क्लेश के लिए</ref> है ऐश दुनिया का
ग़मे-फ़िराक़<ref>विरह के दु:ख</ref> में तकलीफ़-सैरे-गुल<ref>गुलाबों में सैर का कष्ट</ref> न दो
मुझे दिमाग़<ref>मन</ref> नहीं ख़न्दा-हाए-बेजा<ref>अकारण हँसना</ref> का
हनूज़<ref>अभी</ref> महरमी-ए-हुस्न<ref>रूप से परिचय</ref> को तरसता हूँ
करे है हर बुने-मू<ref>बाल की जड़</ref> काम चश्मे-बीना<ref>देख सकने वाली आँख</ref> का
दिल उसको पहले ही नाज़ो-अदा से दे बैठे
हमें दिमाग़ कहां हु्स्न के तक़ाज़ा का
न कह कि गिरिया<ref>रुदन</ref> बमिक़दारे-हसरते-दिल<ref>दिल की हसरत के अनुपात से</ref> है
मेरी निगाह में है जमओ़-ख़रज<ref>उतार-चढ़ाव</ref> दरिया का
फ़लक को देखके करता हूँ उसको याद ‘असद’
जफ़ा<ref>गुस्से</ref> में उसकी है अन्दाज़<ref>ढंग</ref> कारफ़रमा<ref>हुकमदान</ref> का