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गीतको बेसुरो राग भो जिन्दगी / निमेष निखिल

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गीतको बेसुरो राग भो जिन्दगी
फूल नै छैन त्यो वाग भो जिन्दगी
 
शीतले तापले रुन्छ जो धर्धरी
घामले वैलँदो साग भो जिन्दगी
 
छैन ठाउँ कतै लुक्नु हो केगरी
आखिरी कालकै भाग भो जिन्दगी
 
छैन खै आँतमा प्रेमको माधुरी
दुष्ट त्यो कर्कसा काग भो जिन्दगी
 
चोटमा चोट नै थप्दछन् जोसुकै
घाउ नै घाउको दाग भो जिन्दगी।