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गीतपर्व आया है / राजेन्द्र गौतम
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अधसोई घाटी पर
आतुर-सा यायावर
बादल झुक आया है ।
गगन-गुफ़ा में जाकर
अनहद में डूब गई,
अब थी अब ग़ायब है
शायद रस-बूँद हुई
यों लगता है जैसे
धूप किसी कबिरा की
वेदान्ती माया है ।
मुग्ध ग्रामिकाओं की
चल चितवन को हरषा,
‘गम्भीरा’ का जल पी
‘वानीरों’ को सरसा
‘अलका’ के चिर उदास
आँगन में जैसे फिर
मेघदूत आया है ।
हवा चली खनकाती
लय-छन्दों की पायल,
रेशमी फुहारों का
उड़-उड़ जाता आँचल
आषाढ़ी अम्बर से
उतर आज धरती पर
‘गीतपर्व’ आया है ।