भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतपर्व आया है / राजेन्द्र गौतम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अधसोई घाटी पर
आतुर-सा यायावर
बादल झुक आया है ।

गगन-गुफ़ा में जाकर
अनहद में डूब गई,
अब थी अब ग़ायब है
शायद रस-बूँद हुई
यों लगता है जैसे
धूप किसी कबिरा की
वेदान्ती माया है ।

मुग्ध ग्रामिकाओं की
चल चितवन को हरषा,
‘गम्भीरा’ का जल पी
‘वानीरों’ को सरसा
‘अलका’ के चिर उदास
आँगन में जैसे फिर
मेघदूत आया है ।

हवा चली खनकाती
लय-छन्दों की पायल,
रेशमी फुहारों का
उड़-उड़ जाता आँचल
आषाढ़ी अम्बर से
उतर आज धरती पर
‘गीतपर्व’ आया है ।