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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 50 से 60/पृष्ठ 11

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भरतजी अयोध्यामें

ऐसे तैं क्यों कटु बचन कह्यो री ?
राम जाहु कानन, कठोर तेरो कैसे धौं हृदय रह्यो, री ||

दिनकर-बंस, पिता दसरथ-से, राम-लषन-से भाई |
जननी !तू जननी ?तौ कहा कहौं, बिधि केहि खोरि न लाई ||

हौं लहिहौं सुख राजमातु ह्वै, सुत सिर छत्र धरैगो |
कुल-कलङ्क मल-मूल मनोरथ तव बिनु कौन करैगो ?||

ऐहैं राम, सुखी सब ह्वैहैं, ईस अजस मेरो हरिहैं |
तुलसिदास मोको बड़ो सोच है, तू जनम कौनि बिधि भरिहै ||