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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 71 से 80/पृष्ठ 5

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काहेको मानत हानि हिये हौ?
प्रीति-नीति-गुन-सील-धरम कहँ तुम अवलम्ब दिये हौ ||

तात! जात जानिबे न ए दिन, करि प्रमान पितु-बानी |
ऐहौं बेगि, धरहु धीरज उर कठिन कालगति जानी ||

तुलसिदास अनुजहि प्रबोधि प्रभु चरनपीठ निज दीन्हें |
मनहु सबनिके प्रान-पाहरु भरत सीस धरि लीन्हें ||