गीतावली उत्तरकाण्ड पद 11 से 20 तक/ पृष्ठ 2
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राग भैरव
प्रातकाल रघुबीर-बदन-छबि चितै, चतुर चित मेरे |
होहिं बिबेक-बिलोचन निरमल सुफल सुसीतल तेरे ||
भाल बिसाल बिकट भ्रुकुटी बिच तिलक-रेख रुचि राजै |
मनहुँ मदन तम तकि मरकत-धनु जुगुल कनक सर साजै ||
रुचिर पलक लोचन जुग तारक स्याम, अरुन सित कोए |
जनु अलि नलिन-कोस महँ बन्धुक-सुमन सेज सजि सोए ||
बिलुलित ललित कपोलनिपर कच मेचक कुटिल सुहाए |
मनो बिधुमहँ बनरुह बिलोकि अलि बिपुल सकौतुक आए ||
सोभित स्रवन कनक-कुण्डल कल लम्बित बिबि भुजमूले |
मनहुँ केकि तकि गहन चहत जुग उरग इंदु प्रतिकूले ||
अधर अरुनतर, दसन-पाँति बर, मधुर मनोहर हासा |
मनहुँ सोन सरसिज महँ कुलिसनि तड़ित सहित कृत बासा ||
चारु चिबुक, सुकतुण्ड बिनिन्दक सुभग सून्नत नासा |
तुलसिदास छबिधाम राममुख सुखद, समन भवत्रासा ||