(18)
राम-हिण्डोला
राग मलार
आली री! राघोके रुचिर हिण्डोलना झूलन जैए ||
फटिक-भीति सुचारु चहुँ दिसि, मञ्जु मनिमय पौरि |
गच काँच लखि मन नाच सिखि जनु, पाँचसर-सुफँसौरि ||
तोरन-बितान-पताक-चामर-धुज सुमन-फल घौरि |
प्रतिछाँह-छबि कबि-साखि दै प्रति सों कहै गुरु हौं रि ||
मदन-जयके खम्भ-से रचे खम्भ सरल बिसाल |
पाटीर-पाटि बिचित्र भँवरा बलित, बेलन लाल ||
डाँड़ो कनक कुङ्कुम-तिलक-रेख-सी मनसिज-भाल |
पटुली पदिक रति-हृदय जनु कलधौत कोमल माल ||
उनये सघन घनघोर, मृदु झरि सुखद सावन लाग |
बगपाँति, सुरधनु, दमक दामिनि हरित भूमि-बिभाग ||
दादुर मुदित, भरे सरित-सर, महि उमग जनु अनुराग |
पिक-मोर-मधुप-चकोर-चातक-सोर उपबन बाग ||
सो समौ देखि सुहावनो नवसत सँवारि-सँवारि |
गुन-रूप-जोबन-सींव सुन्दरि चलीं झुण्डनि झारि ||
हिण्डोल-साल बिलोकि सब अंचल पसारि-पसारि |
लागीं असीसन राम-सीतहि सुख-समाजु निहारि ||
झूलहिं, झुलावहिं, ओसरिन्ह गावैं सुहो, गौण्डमलार |
मञ्जीर-नूपुर-बलय-धुनि जनु काम-करतल-तार ||
अति मुचत स्रमकन मुखनि, बिथुरे चिकुर, बिलुलित हार |
तम तड़ित उडुगन अरुन बिधु जनु करत ब्योम- बिहार ||
हिय हरषि, बरषि प्रसून निरखति बिबुध-तिय तृन तूरि |
आनन्द-जल-लोचन, मुदित मन, पुलक तनु भरि पूरि ||
सब कहहिं, अबिचल राज नित, कल्यान-मङ्गल भूरि |
चिर जियौ जानकिनाथ जग तुलसी-सजीवनि-मूरि ||