(6)
आजु रघुबीर-छबि जात नहि कछु कही |
सुभग सिंहासनासीन सीतारवन,
भुवन-अभिराम, बहु काम सोभा सही ||
चारु चामर-व्यजन, छत्र-मनिगन बिपुल
दाम-मुकुतावली-जोति जगमगि रही |
मनहुँ राकेस सँग हंस-उडुगन-बरहि
मिलन आए हृदय जानि निज नाथ ही ||
मुकुट सुन्दर सिरसि, भालबर, तिलक-भ्रू,
कुटिल कच, कुण्डलनि परम आभा लही |
मनहुँ हर-डर जुगल मारध्वजके मकर
लागि स्रवननि करत मेरुकी बतकही ||
अरुन-राजीव-दल-नयन करुना-अयन,
बदन सुषमासदन, हास त्रय-तापही |
बिबिध कङ्कन हार, उरसि गजमनि-माल,
मनहुँ बग-पाँति जुग मिलि चली जलदही ||
पीत निरमल चैल, मनहुँ मरकत सैल,
पृथुल दामिनि रही छाइ तजि सहजही |
ललित सायक-चाप, पीन भुज बल अतुल
मनुजतनु दनुजबन-दहन, मण्डन-मही ||
जासु गुन-रूप नहि कलित, निरगुन सगुन,
सम्भु, सनकादि, सुक भगति दृढ़ करि गही |
दास तुलसी राम-चरन-पङ्कज सदा
बचन मन करम चहै प्रीति नित निरबही ||