गीतावली उत्तरकाण्ड पद 1 से 10 तक/ पृष्ठ 4
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राजत रघुबीर धीर, भञ्जन भव-भीर, पीर-
	हरन सकल सरजुतीर निरखहु, सखि! सोहैं |
	सङ्ग अनुज मनुज-निकर, दनुज-बल-बिभङ्ग-करन;
	अंग-अंग छबि अनङ्ग अगनित मन मोहैं ||
	
	सुखमा-सुख-सील-अयन नयन निरखि निरखि नील
	कुञ्चित कच, कुण्डल कल, नासिका चित पोहैं |
	मनहु इंदुबिम्ब मध्य कञ्ज-मीन-खञ्जन लखि
	मधुप-मकर-कीर आए तकि तकि निज गौहैं ||
	
	ललित गण्ड-मण्डल, सुबिसाल भाल तिलक झलक 
	मञ्जुतर मयङ्क-अंक रुचिर बङ्क भौहैं |
	अरुन अधर, मधुर बोल, दसन-दमक दामिनि दुति,
	हुलसति हिय हँसनि चारु चितवनि तिरछौहैं ||
	कम्बुकण्ठ, भुज बिसाल उरसि तरुन तुलसिमाल,
	मञ्जुल मुकतावलि जुत जागति जिय जोहैं |
	जनु कलिन्द-नन्दिनि मनि-इंद्रनील-सिखर परसि 
	धँसति लसति हंससेनि-सङ्कुल अधिकौहैं ||
	दिब्यतर दुकूल भब्य, नब्य रुचिर चम्पक चय,
	चञ्चला-कलाप, कनक-निकर अलि! किधौं हैं |
	सज्जन-चष-झष-निकेत, भूषन-मनिगन समेत,
	रूप-जलधि-बपुष लेत मन-गयन्द बोहैं ||
	अकनि बचन-चातुरी तुरीय पेखि प्रेम-मगन 
	पग न परत इत, उत, सब चकित तेहि समौ हैं |
	तुलसिदास यह सुधि नहि कौनकी, कहाँतें आई ,
	कौन काज, काके ढिग, कौन ठाउँ को हैं ||
	
	