भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली उत्तरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 10

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(28)

आइ लषन लै सौम्पी सिय मुनीसहि आनि |
नाइ सिर रहे पाइ आसिष जोरि पङ्कजपानि ||

बालमीकि बिलोकि ब्याकुल लषन गरत गलानि |
सरबिबद बूझत न, बिधिकी बामता पहिचानि ||

जानि जिय अनुमानही सिय सहस बिधि सनमानि |
राम सदगुन-धाम-परमिति भई कछुक मलानि ||

दीनबन्धु दयालु देवर देखि अति अकुलानि |
कहति बचन उदास तुलसीदास त्रिभुवन-रानि ||