(24) रामराज्य
राग सोरठ
पालत राज यों राजा राम धरमधुरीन |
सावधान, सुजान, सब दिन रहत नय-लयलीन ||
स्वान-खग-जति-न्याउ देख्यो आपु बैठि प्रबीन |
नीचु हति महिदेव-बालक कियो मीचुबिहीन ||
भरत ज्यों अनुकूल जग निरुपाधि नेह नवीन |
सकल चाहत रामही, ज्यों जल अगाधहि मीन ||
गाइ राज-समाज जाँचत दास तुलसी दीन |
लेहु निज करि, देहु निज-पद-प्रेमपावन पीन ||