भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली उत्तरकाण्ड पद 31 से 40 तक/पृष्ठ 1
Kavita Kosh से
(31)
गौने मौनही बारहि बारि परि परि पाय |
जात जनु रथ चीर कर लछिमन मगन पछिताय ||
असन बिनु बन, बरम बिनु रन, बच्यौ कठिन कुघाय |
दुसह साँसति सहनको हनुमान ज्यायो जाय ||
हेतु हौं सियहरनको तब, अबहु भयो सहाय |
होत हठि मोहि दाहिनो दिन दैव दारुन दाय ||
तज्यो तनु सङ्ग्राम जेहि लगि गीध जसी जटाय |
ताहि हौं पहुँचाइ कानन चल्यों अवध सुभाय ||
घोरहृदय कठोर-करतब सृज्यो हौं बिधि बायँ |
दास तुलसी जानि राख्यो कृपानिधि रघुराय ||