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गीतावली पद 91 से 100 तक/पृष्ठ 4

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094.रागटोड़ी

जनक मुदित मन टूटत पिनाकके |
बाजे हैं बधावने, सुहावने मङ्गल-गान,
भयो सुख एकरस रानी राजा राँकके ||

दुन्दुभी बजाइ, गाइ हरषि बरषि फूल,
सुरगन नाचैं नाच नायकहू नाकके |
तुलसी महीस देखे दिन रजनीस जैसे,
सूने परे सून-से मनो मोटाए आँकके ||