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गीतावली पद 91 से 100 तक/पृष्ठ 7
Kavita Kosh से
097.
रागकेदारा
लेहु री! लोचननिको लाहु |
कुँवर सुन्दर साँवरो, सखि सुमुखि ! सादर चाहु ||
खण्डि हर-कोदण्ड ठाढ़े, जानु-लम्बित-बाहु |
रुचिर उर जयमाल राजति, देत सुख सब काहु ||
चितै चित-हित-सहित नख-सिख अंग-अंग निबाहु |
सुकृत निज, सियराम-रुप, बिरञ्चि-मतिहि सराहु ||
मुदित मन बरबदन-सोभा उदित अधिक उछाहु |
मनहु दूरि कलङ्क करि ससि समर सूद्यो राहु ||
नयन सुखमा-अयन हरत सरोज-सुन्दरताहु |
बसत तुलसीदास-उरपुर जानकीकौ नाहु ||