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बैठी सगुन मनावति माता |
कब ऐहैं मेरे बाल कुसल घर, कहहु, काग! फुरि बाता ||
दूध-भातकी दोनी दैहौं, सोने चोञ्च मढ़ैहौं |
जब सिय-सहित बिलोकि नयन भरि राम-लषन उर लैहौं ||
अवधि समीप जानि जननी जिय अति आतुर अकुलानी |
गनक बोलाइ, पाँय परि पूछति प्रेम मगन मृदु बानी ||
तेहि अवसर कोउ भरत निकटतें समाचार लै आयो |
प्रभु-आगमन सुनत तुलसी मनो मीन मरत जल पायो ||