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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 1 से 10 तक/पृष्ठ 10

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कबहूँ, कपि! राघव आवहिङ्गे ?
मेरे नयनचकोर प्रीतिबस राकाससि मुख दिखरावहिङ्गे ||
मधुप, मराल, मोर, चातक ह्वै लोचन बहु प्रकार धावहिङ्गे |
अंग-अंग छबि भिन्न-भिन्न सुख निरखि-निरखि तहँ-तहँ छावहिङ्गे ||

बिरह-अगिनि जरि रही लता ज्यों कृपादृष्टि-जल पलुहावहिङ्गे |
निज बियोग-दुख जानि दयानिधि मधुर बचन कहि समुझावहिङ्गे ||

लोकपाल, सुर, नाग, मनुज सब परे बन्दि कब मुकतावहिङ्गे ?
रावनबध रघुनाथ-बिमल-जस जारदादि मुनिजन गावहिङ्गे ||

यह अभिलाष रैन-दिन मेरे, राज बिभीषन कब पावहिङ्गे |
तुलसिदास प्रभु मोहजनित भ्रम, भेदबुद्धि कब बिसरावहिङ्गे ||