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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 5

(45)

सत्य कहौं मेरो सहज सुभाउ |
सुनहु सखा कपिपति लङ्कापति, तुम्ह सन कौन दुराउ ||

सब बिधि हीन-दीन, अति जड़मति जाको कतहुँ न ठाउँ |
आयो सरन भजौं, न तजौं तिहि, यह जानत रिषिराउ ||

जिन्हके हौं हित सब प्रकार चित, नाहिन और उपाउ |
तिन्हहिं लागि धरि देह करौं सब, डरौं न सुजस नसाउ ||

पुनि पुनि भुजा उठाइ कहत हौं, सकल सभा पतिआउ |
नहि कोऊ प्रिय मोहि दास सम, कपट-प्रीति बहि जाउ ||

सुनि रघुपतिके बचन बिभीषन प्रेम-मगन, मन चाउ |
तुलसिदास तजि आस-त्रास सब ऐसे प्रभु कहँ गाउ ||